कर्मभूमि का कथासार-> ‘कर्मभूमि’ यथार्थ और आदर्श के अद्भुत समन्वय की एक ऐसी कृति है जो मानव मन के विविध रूपों को कुशलता से चित्रित करती है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़े गए स्वाधीनता आंदोलन की झांकी प्रस्तुत करने वाली यह कृति मनुष्य के देववत्व की विजय का उद्घोष है । ‘कर्मभूमि ‘ में यह संदेश दिया गया है कि प्रत्येक मनुष्य दूसरे मनुष्य को अपने बराबर समझे-मानवीय, सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से । प्रस्तुत उपन्यास कर्म की भावना पर बल देती है। जो कर्म में विश्वास करता है, वही नाम, काम तथा यश प्राप्त करता है। जो आलसी है वह गरीबी तथा विपत्तियों में जीवन जीता है। लाला समरकांत, धनीराम, मनीराम आदि इसी तरह के पात्र हैं, जो चालाकी, बेईमानी और धोखा धड़ी से काम करते है। समाज में मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। भले ही अन्याय, अत्याचार के माध्यम से धन कमाए। वहीं अमरकांत, सलीम, सुखदा, मुन्नी आदि अलग तरह के पात्र हैं। जो कर्म के क्षेत्र में लीन रहते हैं। सत्य तथा अहिंसा का सहारा लेकर आगे बढ़ते हैं।
कथासार
अमरकांत समरकांत का पुत्र है। लाला समरकांत काशी के प्रसिद्ध उद्योगी पुरुष हैं। उन्होंने अपने बाहुबल से लाखों की संपत्ति जमा कर ली थी। अमरकांत काशी के क्वींस कॉलेज में दसवीं कक्षा का छात्र है। कॉलेज में हर महीने सात तारीख तक फीस न देने पर या तो नाम काट दिया जाता था या दुगुनी फीस देने पड़ती थी। अमरकांत पढ़ाई में रूचि रखता है किंतु उसके पिता समरकांत चाहते हैं कि वह उनके व्यवसाय में हाथ बटाए। इसी कारण अमरकांत पिता से फीस के पैसे नहीं लेता। वह चिंता में इबा है कि समय पर फीस कैसे भरे। उसका मित्र सलीम उसकी चिंता को समझ जाता है और उसे बताए बिना अमरकांत की फीस जमा कर देता है।
कर्मभूमि का कथासार
अमरकांत की माँ का देहांत हो चुका था। उसके पिता समरकांत मित्रों के कहने पर दूसरा विवाह कर लेते हैं। अमरकांत अपनी नई माँ का स्वागत स्नेह से करता है पर बदले में उसे स्नेह नहीं मिलता, जिसकी उसे उम्मीद थी। बात-बात पर डॉट पड़ती है। पिता-पुत्र में परस्पर मतभेद रहता है। जिसके कारण दोनों में स्नेह का अभाव हो जाता है। अमरकांत अपनी सौतेली बहन नैना से अत्यधिक स्नेह रखता है। दोनों के बीच सगे भाई-बहन से भी अधिक प्रेम है। अमरकांत का विवाह रेणुका देवी की पुत्री सुखदा से होता है। सुखदा धनी परिवार की लड़की है। जो वैभव-विलासिता को जीवन में अधिक महत्व देती है। किंतु अमरकांत के लिए यह सब बातें व्यर्थ हैं। अमरकांत की बहन नैना से फीस के पैसे देती है। समरकांत को जब इस बात का पता चलता है तो वे अमरकांत को भला-बुरा कहते हैं। अमरकांत पिता के इन कड़वे वचनों से आहत हो जाता है। सुखदा भी इस अपमान को सहन नहीं कर पाती। वह अमरकांत को माँ के पास चलने के लिए कहती है। ताकि वे आगे की पढ़ाई पूरी कर सके। अमरकांत इस बात को स्वीकार नहीं करता। विवाह के दो वर्ष बीत जाने के बाद भी अमरकांत तथा सुखदा में सामंजस्य नहीं था। दोनों के विचार तथा व्यवहार अलग थे
कर्मभूमि
मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात अमरकांत के सामने पैसा कमाने की समस्या आती है। वह व्यापारियों के यहाँ लिखने पढ़ने का काम करने लगता हैं। पुत्र के इस प्रकार के कार्य को लेकर समरकांत पहले बहुत बिगड़ते हैं किंतु अमरकांत के समझाने पर कि वह व्यावसायिक ज्ञानोपार्जन के लिए कर रहा है। तो समरकांत ने समझा कि वह कुछ न कुछ सीख ही जायेगा। अतः उन्होंने विरोध करना छोड़ दिया। अमरकांत की रूचि व्यवसाय की अपेक्षा सामाजिक कल्याण के कार्यों में थी। सुखदा के बहुत समझाने पर अमरकांत पिता की दुकान पर बैठने के लिए तैयार होता है साथ ही साथ घर गृहस्थी के कार्य में भी रुचि लेने लगता है। एक दिन अमरकांत दुकान पर बैठा था, कि काले खाँ नाम का व्यक्ति वहाँ आता है। जो चोरी किए हुए सोने के कड़े बेचना चाहता है। अमरकांत उसे मना कर देता है । काले खाँ बहुत मोल भाव करता है। अंत में अमरकांत पुलिस का डर दिखाकर उसे भगा देता है। जब लाला समरकांत को पता चलता है तो वे अमरकांत को भला-बुरा कहते हैं।
कर्मभूमि का कथासार
दुकान पर बूढ़ी पठानिन आती है जो अमरकांत से पाँच रुपये माँगती है। पूछने पर अमरकांत को ज्ञात होता है कि यह विधवा स्त्री समरकांत के पुराने नौकर की विधवा है जिसे सहायता के रूप में पाँच रुपये हर महीने दिए जाते हैं। अमरकांत उस बढी पठानिन को छोड़ने घर जाता है। वहाँ उसकी पोती सकीना से उसकी मुलाकात होती है। अमर उसके रूप सौंदर्य की ओर आकर्षित होता है। घर की दयनीय स्थिति देखकर अपने पिता समरकांत पर क्रोध भी आता है कि सहायता के रूप में जो पाँच रुपये दिए जाते हैं, उससे घर का गुजारा अत्यंत कठिनाई से होता है। बूढ़ी पठानिन अमर से प्रार्थना करती है कि उसकी पोती के द्वारा बनाए रूमालों को बेचने की व्यवस्था कर दे। साथ ही उसके लिए मुस्लिम वर की खोज करे ताकि उसका विवाह हो सके।
कथासार
एक दिन समरकांत दुकान पर बैठे हुए थे कि दो अंग्रेज तथा एक मेम सोने की जंजीर बेचने आते हैं। बाहर जाते समय एक भिखारिन से मुठभेड़ के दौरान उनकी हत्या हो जाती है। उस भिखारिन को जिसका नाम मुन्नी है, पुलिस पकड़ कर ले जाती है। मुन्नी अपना अपराध कबूल कर लेती है। साथ ही यह भी बताती है कि उसने हत्या इसलिए की क्योंकि गोरे लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया था। समस्त जनता की सहानुभूति उसके साथ रहती है। सलीम, डॉ. शांतिकुमार उसे बरी करवाने का प्रयास करते हैं। जज मुन्नी के पक्ष में फैसला सुनाते हैं कि उसने हत्या मानसिक अस्थिरता की दशा में की है। अतः उसे मुक्त कर दिया जाता है। मुन्नी का पति उसे घर वापस ले जाना चाहता है। किंतु मुन्नी घर लौटना नहीं चाहती है। उसे डर है कि समाज उसे सम्मानपूर्वक जीने नहीं देगा।
कथासार
अमरकांत मन ही मन सकीना के प्रति प्रेम भाव रखने लगता है। इस बीच अमरकांत के घर पुत्र का जन्म होता है लाला समरकान्त अत्यंत प्रसन्न होते हैं। दिल खोलकर खर्च करते हैं। अमरकांत भी पुत्र-जन्म के बाद घर-गृहस्थी के कार्यो में ध्यान देने लगता है। यद्यपि वह सुखदा के प्रति अत्यधिक स्नेह रखने लगता है, परंतु सकीना के आकर्षण को भी छोड़ नहीं पाता है। जब सलीम उसे आकर बताता है कि सकीना का विवाह होने वाला है तो उसकी बेचैनी बढ़ने लगती है। वह उसे अपनाना चाहता है। सलीम उसे समझाने का प्रयास करता है। किंतु अमर सकीना को लेकर दूर चले जाना चाहता है। सकीना इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है। वह नहीं चाहती है, उसके कारण अमरकांत के जीवन में कठिनाइयाँ आए। साथ ही आजीवन विवाह न करने का प्रण लेकर एक तरह से अमरकांत के प्रति अपने प्रेम की पुष्टि करती है।
कर्मभूमि का कथासार
अमरकांत अपना अधिकतर समय समाज कल्याण कार्यों में बिताता है। उसे म्युनिसिपल बोर्ड का सदस्य बनाया जाता है। उसके पिता चाहते हैं कि वह अपना पूरा समय व्यापार में लगाए। इस बात को लेकर पिता-पुत्र में कहासुनी हो जाती है। वह अपने मन की बात पिता को बता देता है। समरकांत अत्यंत क्रोधित हो जाते है और अमरकांत को पत्नी बच्चे सहित घर से अलग होने के लिए कह देते हैं। जिसे सुनकर अमरकांत तथा सुखदा हैरान हो जाते है। नैना को अपने भाई – भाभी के इस तरह घर छोड़ने को ठीक नहीं लगता है। घर गृहस्थी के लिए अमरकांत खादी बेचने का काम शुरू करता है। वह सुखदा भी एक विद्यालय में 50 रुपये की नौकरी शुरू कर देती है। कुछ समय पश्चात् सुखदा को पता चलता है कि लाला समरकांत बीमार हैं। वह उन्हें देखने घर जाती है उनकी हालत देखकर उसे पश्चाताप होता है। वह लाला समरकांत की खूब सेवा करती है।
कर्मभूमि का कथासार
समरकांत को अपनी गलती का एहसास होता है। वह पुत्र की उदासीनता से दुखी रहने लगते हैं। बीच-बीच में सुखदा और अमरकांत में मध्य लड़ाई-झगड़ा होता रहता है। अमरकांत के लिए एक ही जगह ऐसी है जहाँ वह कुछ पल शांति से बिता सकता है। वह सकीना के घर जाने लगता है। बूढ़ी पठानिन को अमरकांत का इस तरह आना अच्छा नहीं लगता। वह उसे साफ-साफ मना कर देती है। अमरकांत अपने दिल की बात सलीम को बताता है। सलीम अमरकांत और समरकांत के बीच समझौता करवाना चाहता है। अमर सकीना को अपनाना चाहता है। समरकांत इसके लिए राजी नहीं होते।
कर्मभूमि
अमरकांत घर छोड़कर दूर किसी दूसरे स्थान पर चला जाता है। वह स्थान निम्न जाति के लोगों की बस्ती है। अमरकांत जात पात नहीं मानता है। इसलिए उसे वहाँ रहने में कोई कठिनाई नहीं होती है। अमर यहाँ बच्चों के लिए पाठशाला शुरू करता है उन्हें साफ सफाई का महत्व बताता है। धीरे-धीरे गाँव में परिवर्तन आने लगता है। चमार जाति के लोग अमरकांत के समझाने पर मांस-मदिरा खाना बंद कर देते हैं। यहाँ तक की दूसरे गाँव के लोगों में भी बदलाव आ जाता है। यहीं रहते हुए अमरकांत की मुलाकात मुन्नी से होती है। मुन्नी उसे अपने अपराध-मुक्त होने से लेकर यहाँ हरिद्वार में चमारों की बस्ती में आने तक की सारी कथा सुनाती है। इसी गाँव के चौधरी के लड़के ने उसे बचाया था। उसका इलाज करवाया। यहीं रहकर उसे पर्याप्त आदर-सम्मान मिला।
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अमरकांत के घर छोड़ देने के बाद समरकांत को अपनी गलती का एहसास होता है। वह धार्मिक कार्यों में भाग लेते हैं तथा चंदा भी देते। रामकथा का आयोजन करवाते हैं। ब्रह्मचारी मधुसुदन को पुरोहित बनाया जाता है। कथा को सुनने बहुत से लोग आते हैं। कुछ चमार जाति के लोग कथा श्रवण के लिए मंदिर के बाहर दरवाजे के पास बैठ जाते हैं। पंडित समाज इसका विरोध करता है। झगड़ा बहुत बढ़ जाता है। डॉ. शाति कुमार अछूतों का पक्ष लेते हैं। वे उन्हें मंदिर में प्रवेश दिलवाना चाहते हैं। इस लड़ाई में डॉ. शांतिकुमार को लाठियाँ खानी पड़ती हैं। वे घायल हो जाते है। नैना शांतिकुमार की सेवा करती है। लाला समरकांत दोनों पक्षों की लड़ाई को शांत करने के लिए पुलिस बुलाते हैं। सुखदा इससे नाराज हो जाती है। वे समरकांत को झुकने के लिए मजबूर कर देती है। रेणुका देवी समाज कल्याण के लिए ट्रस्ट की स्थापना करती है। डॉ. शांति कुमार अपना सारा जीवन समाज सेवा में लगा देते हैं।
कर्मभूमि का कथासार
नैना का विवाह धनीराम के पुत्र मनीराम के साथ होता है। दोनों के बीच सामंजस्य नहीं बैठ पाता है। मनीराम में बुरी आदतें हैं। जिससे दोनों के बीच लड़ाई झगड़ा होता रहता है। नैना अपना जीवन समाज कल्याण में लगाने का निर्णय लेती है। सेवाश्रम की शाखाएं हर मुहल्ले में खोली जाती हैं। सुखदा गरीबों के लिए मकान बनवाने के लिए म्यूनिसिपैलिटी से जमीन की मांग करती है। धनीराम इसका विरोध करते हैं। सुखदा आन्दोलन करती है। जिसके कारण उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। समरकांत जमानत पर रिहा करवाना चाहते हैं। पर सुखदा मना कर देती है। सलीम आई.ए.एस. अफसर बनकर वहीं जाता है। जहाँ अमरकांत रह रहा है। सलीम अमरकांत से मिलता है। उसे सकीना के विषय में बताता है साथ ही उससे विवाह की अनुमति माँगता है। जिसे अमरकांत स्वीकार कर लेता है। सुखदा तथा समरकांत की सामाजिक कार्यों में अग्रणी भूमिका की जानकारी देता है।
कर्मभूमि का कथासार
अमरकांत के गाँव में किसान अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं। किसानों के लगान माफी के लिए अमरकांत प्रयास करता है। पर सरकार से कुछ मदद न मिलने पर आंदोलन शुरू कर देता है। सलीम उसे गिरफ्तार करता है। उसी जेल भेज दिया जाता है। सुखदा तथा नैना भी उसे जेल में बंद हैं, जहाँ अमरकांत है।
समरकांत उसी गाँव में जाते हैं जहाँ अमरकांत रहता था। वहाँ किसानों की दयनीय दशा को देखते हैं। सलीम को फटकारते है। सलीम इस घटना की जानकारी सरकार तक पहुँचाता है। सरकार उसे नौकरी से अलग कर देती है। सलीम भी किसानों के हक के लिए कार्य शुरू कर देता है। मिस्टर घोष के साथ सलीम की कहासुनी हो जाती है। जिसके कारण उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है।
कर्मभूमि का कथासार
सुखदा, नैना, शांतिकुमार के जेल जाने के बाद पठानिन, समरकांत, रेणुकादेवी आदि सभी आन्दोलन से जुड़ते हैं। सभी को जेल भेज दिया जाता है। नैना भी इस आंदोलन का हिस्सा बनती है। म्यूनिसिपैलिटी के दफ्तर में गरीबों को मकान देने के लिए जमीन देने को लेकर मिटिंग चल रही थी कि नैना आंदोलनकारियों के साथ वहाँ पहुँचती है। मनीराम उस पर गोली चला देता है। भीड़ बेकाबू हो जाती है। बोर्ड को भूमि देने का निर्णय लेना पड़ता है। जिस आंदोलन की शुरूआत सुखदा करती है, उसका अंत नैना की मौत से होता है। सभी उसकी मृत्यु से दुःखी हैं। अमरकांत पर तो मानो पहाड़ टूट पड़ता है। यहीं जेल में अमर और सुखदा मिलते हैं। जब अमरकांत को पिता के समाज-सेवी होने का पता चलता है, उसका मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। बोर्ड के अनुरोध पर सभी कैदियों को छोड़ने की घोषणा होती है। साथ ही सलीम, अमर सहित पांच लोगों की कमेटी बना दी जाती है। अमर तथा सुखदा पिता से क्षमा-याचना करते है। सलीम तथा सकीना का विवाह निश्चित हो जाता है। अंत में सभी उसी गाँव में जाकर रहने का निश्चय करते हैं। जहाँ अमरकांत रहता था।
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