ज्योतिबा फुले के नारी संबंधी चिंतन पर विचार कीजिए।
ज्योतिबा फुले के नारी संबंधी चिंतन -> नवजागरण युग में जागरूक मध्यवर्गीय समाज सुधारकों ने नारी की दशा में सुधार को अपना प्रमुख विषय बनाया था। लेकिन नारी के लिए मानवीय अधिकार की माँग करने के लिए उन्होंने वेद और पुराण की परंपरा का ही सहारा लिया। स्त्री को मृत पति के साथ क्यों जलाया जाए ? जैसे प्रश्न वे सनातन धर्म के विरोध में उठाते रहे। लेकिन इसके विरोध के लिए आधुनिक वैज्ञानिक सोच के स्थान पर वे इसके खोज प्रमाण वेद के पन्नों में ढूँढते थे लेकिन फूले का नारी विषयक चिंतन सहज बोध, सभी मनुष्यों की गरिमा के सम्मान करने और उनकी समानता में विश्वास करने से विकसित हुआ है। यह सभी देखें –> हिंदी व्याकरण क्रिया, Hindi grammar, verb Quiz
इससे आगे बढ़कर वे सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक में बलवंत राय के सवाल पूछने पर कहते हैं। नर और नारी में नारी ही श्रेष्ठ है। वही हम सबको जन्म देने वाली है, वही हम सभी को पाल पोस कर हमारी देखभाल करने वाली है, जब हम दुर्बल और अबोध होते हैं। नवजागरण के नायकों ने नारी समर्थन में अपने विचार दिए लेकिन सहमें स्वर में। उसकी तुलना में महात्मा फुले का यह कथन अपने समय के संदर्भ में बहुत साहसिक कथन है। उन्होंने त्याग के गुण के कारण खुले शब्दों में नारी के पुरुष से श्रेष्ठ घोषित किया। यह सभी देखें -> Indian politics Gk Quiz
यहाँ सवाल उठता है कि नारी अगर श्रेष्ठ है तो उसकी दुर्दशा का कारण क्या है ?
ज्योतिबा फुले के नारी संबंधी चिंतन -> यहाँ सवाल उठता है कि नारी अगर श्रेष्ठ है तो उसकी दुर्दशा का कारण क्या है ? अन्य विचारकों ने इसकी व्याख्या ऐकांतिक रूप से की है। लेकिन फूले ने नारी की दशा को वर्ण और जाति के बंधनों से जोड़ कर देखा है। ब्राह्माणी पितृसत्ता ने अपने यौन विलास के लिए स्त्री को समस्त अधिकारों और गर्मी से वंचित करके उसे पूर्णतः शक्तिहीन और पितृसत्ता पर निर्भर बना दिया। किताबों में उसे देवी का दर्जा दिया लेकिन हकीकत में वह घर की चाहरदीवारी में कैद दासी भर थी। आधुनिक काम में स्त्री को इस कैद से मुक्ति मिली। शिक्षा उनके लिए मुक्ति का माध्यम बन कर आई। यह सभी देखें -> Benefits Of Lemon Water
फूले ने स्त्रियों की इस मुक्ति का श्रेय ब्रह्म समाज जैसी नवजागरण संस्थाओं के बजाय पाश्चात्य शिक्षा के दिया है ‘सत्सार’ पुस्तक में एक पात्र इसी भावना को व्यक्त करते हुए कहता है-अंग्रेजी शासन की उदारतावादी शिक्षण प्रणाली की वजह से नई सामाजिक चेतना आ रही है। इसके लिए पंडिता रमाबाई और ताराबाई शिंदे जैसी विदुषी महिलाओं की उन्होंने प्रशंसा की है। इन स्त्रियों ने अपनी विद्वता से समाज के पाखंड पर कठोर प्रहार किया। महात्मा फूले ने बाल विवाह जैसी समस्या पर ही नहीं बल्कि उन्होंने ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक एकाधिकार जो स्त्री पुरुष संबंधों के बीच सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न करके स्त्री को पुरुष की अधिसत्ता में मात्र एक दासी का दर्जा देता है का विरोध किया था। जब वे सती प्रथा का विरोध करते हैं तो इसकी बुनियाद पर प्रहार करते हैं। वेद और पुराणों से साक्ष्य ढूंढने नहीं जाते हैं-सभी दुर्गुणों से अलंकृत पति के मरते ही औरत पति के पाँव का अँगूठा अपने हाथ लेकर दूसरी जाति के अपवित्र हज्जाम के हाथों अपना सिर मुंडवा लेना, तन पर चढ़े हुए सभी गहने अपने बूढ़े ससुर के हाथों में देकर अपने हाथों में तुलसी माला पहनने के लायक भिखारिन हो जाना, यह किस दुनिया का न्याय है।
अंधेर न्याय के बीज
ज्योतिबा फुले के नारी संबंधी चिंतन -> पंरपरागत ब्राह्मण ग्रंथों में इस अंधेर न्याय के बीज उपस्थित है। कर्म का उपदेश देने वाली गीता में स्त्री को पाप योनि का बताया गया है। पूर्व जन्म के कारण जिस प्रकार समुद्र को उसके वर्ण में जन्म मिलता उसी प्रकार स्त्री का जन्म पाप के दण्ड स्वरूप होता है। यह तर्क शूद्र और स्त्री के शोषण का वैचारिक आधार तैयार करता है। उसके आगे कृष्ण कहते हैं कि इनकी मुक्ति मेरी शरण में आने पर होगीं। यह कथन वास्तव में ईश्वर नहीं पितृसत्तात्मक पुरुष का है। यह कैसा न्याय है कि त्याग और सेवा के बाद भी पाप से मुक्ति के लिए स्त्री को मुक्ति के लिए भगवान की शरण में जाना पड़ता है। जबकि पुरुष समस्त भोग और विलास के बावजूद इस शर्त से मुक्त है। स्त्रियों के साथ ब्राह्मण ग्रंथकारों का अन्याय ही उनको शूद्रों के समक्ष बनाता है-
शूद्र जैसे वैसी ही नारी भी दीन
उन पर हथियार उठाते थे सारे बुद्धिहीन
निराधार है व्यर्थ की नारी स्पष्ट नफरत ही दिखाई पड़ती हैं यहाँ।।
महात्मा फूले ने पारी का समर्थन केवल विचार के स्तर पर ही नहीं किया बल्कि उनके लिए पाश्चात्य शिक्षा का प्रबंध किया। बालिका शिक्षा के लिए पाठाशालाएँ खोंली। इनमें पढ़ाने के लिए अपनी पत्नी को साक्षर बनाया। इन संस्थाओं से शिक्षा पाई अनेक स्त्रियों ने जन जागरण का कार्य किया। उन्होंने स्त्री के सशक्तिकरण के लिए जो बीड़ा उठाया था उसको मनोयोग से निभाया भी –
अधिकार दिलाने के लिए मैं झगड़ता हूँ
नारियों के लिए सदा।
खर्च की परवाह नहीं मुझे
कार्ल मार्क्स
अंत में हैं। जिस समय कार्ल मार्क्स इंग्लैंड में इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या में कह रहे थे अभी तक समूचा मानव इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है। फूले भी संघर्ष की बात कर रहे थे शूद्र-अति शूद्र और ब्राह्मण के बीच संघर्ष की। अंतर यह था कि मार्क्स को सभ्य संसार में चलन के सारे दस्तावेज, आँकड़े और पाठ्य साम्रगी ब्रिटिश संस्थाओं में उपलब्ध थी जबके फूले के सामने इतिहास के नाम कहानी, मिथक और लोक परंपराएँ थीं।
लेकिन इन सबके बीच में उन्होंने अनुभव दृष्टि और वेदना से गुजर कर देश की बहुसंख्यक जनता के लिए मुक्ति का चिंतन विकसित किया है। समय के साथ इनके चिंतन को विरोधियों ने साजिश भरी उपेक्षा और बदले की कार्यवाही द्वारा विस्मृति की राख से दबा दिया। आदमी को दबाया जा सकता है, मारा भी जा सकता है लेकिन उसकी राख के नीचे विचारों की आग कभी बुझती नहीं। बीसवीं सदी में फूले के विचारों को धार देकर बाबासाहेब आंबेडकर ने मुक्ति का महान आंदोलन खड़ा कर दिया। यह सभी देखें -> What is PVC Aadhaar Card?
निष्कर्षतः
निष्कर्षतः यह कह सकते हैं। आधुनिक भारत के महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फूले ने अपने समय में सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक बंधनों में जकड़े शूद्र एवं अतिशूद्र समाज के उन्नति का विचार रखा। वे शोषित एवं उपेक्षित लोगों की सामाजिक एवं मानसिक गुलामी से मुक्ति का दर्शन प्रस्तुत करते हैं। महात्मा फूले ने अपने सामाजिक चिंतन में जाति व्यवस्था के क्रूरतम पहलुओं पर विचार किया और जाति प्रथा के उन्मूलन की नई वैचारिकी प्रस्तुत की। महात्मा फूले ज्ञान, विवेक और तर्क के आधार पर इतिहास की पुनः व्याख्या प्रस्तुत करते हैं।
वे आर्य और अनार्य जातियों के इतिहास और उनके आदिम जीवन संबंधों पर विचार रखते हैं । उन्होंने शूद्र एवं अतिशूद्रों को इस देश के मूल निवासी माना है और उनके मुक्ति का नया विचार रखा। महात्मा फूले ने अपने आर्थिक चिंतन में गैर बराबरी और असमानता के पहलुओं पर विचार प्रस्तुत करते हुए समता मूलक समाज की परिकल्पना प्रस्तुत की है। फूले का धार्मिक चिंतन सभी समुदायों के विकास और उन्नति का मार्ग दर्शक हैं। उन्होंने सार्वजनिक सत्य धर्म के माध्यम से मनुष्य की प्रतिष्ठा और मानवीय मूल्यों का पुरस्कार किया है। फूले आधुनिक समय के एक ऐसे चिंतक है जिन्होंने स्त्री मुक्ति का विचार रखा और स्त्री-पुरूष की समानता की चर्चा की।
महात्मा फूले संभवत पहले ऐसे विचारक थे जिन्होंने स्त्री मुक्ति, स्त्री शिक्षा, स्त्रियों के आर्थिक अधिकार और उनके सामाजिक अस्तित्व एवं आत्म सम्मान, सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष कार्य किया। उनके संघर्ष और चिंतन का परिणाम है। कि आज दलित और पिछड़े वर्गों में चेतना का उभार दिखाई देता है। इस दृष्टि से वे शोषित एवं उपेक्षित समुदायों के बीच कार्य करने वाले, उनकी प्रगति के लिए पहले करने वाले, पहले प्रेरणा स्त्रोत भी माने जाते हैं।
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