बालकृष्ण भट्ट का जीवन-वृत्त और साहित्यिक परिचय -> बालकृष्ण भट्ट भारतेन्दु युगीन निबन्धकार हैं। डॉ. लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय, डॉ. कृष्णलाल, धनंजय भट्ट ‘सरल’ तथा डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, बालकृष्ण भट्ट को हिन्दी का प्रथम निबन्ध-लेखक स्वीकारने पर भी, भट्ट जी को ही प्रथम निबन्धकार माना है। इन्हें हिन्दी के शुद्ध निबन्ध का जनक कहा जाता है। इन्होंने ‘हिन्दी प्रदीप’ पत्रिका के माध्यम से अपनी निबन्ध-कला का व्यापक परिचय दिया है। परन्तु उपरोक्त सभी मतों के परिप्रेक्ष्य में ऐसा निर्णय करना तर्कसंगत होगा कि भारतेन्दु ही हिन्दी निबन्ध के प्रथम निबन्धकार हैं, क्योंकि उन्हीं के निबन्धों में वे सारी विशेषताएँ मिलती हैं जो ऐसा तर्कपूर्ण निर्णय लेने अथवा निर्णयात्मक स्थापना हेतु हितकर होती है। उनके निबन्ध हिन्दी-निबन्धों के प्रारम्भ का उद्घोष करने में समर्थ हैं।
बालकृष्ण भट्ट का जीवन-वृत्त और साहित्यिक परिचय
बालकृष्ण भट्ट का जन्म सम्वत् 1901 (सन् 1844 ई.) में प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था। इनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। बचपन से ही इन्हें अध्ययन में रुचि थी। इन्होंने अपना व्यावसायिक जीवन प्रयाग में ‘कायस्थ पाठशाला’ में संस्कृत के अध्यापक के रूप में प्रारम्भ किया था। वे हास्य-व्यंग्य के धनी थे। उनका व्यक्तित्व सामयिक चेतना के प्रति सजग था। वे स्पष्टवादी भी थे। इनके इस चरित्रगत गुण की छाप इनके निबन्धों में भी मिलती है। भट्ट जी को एक प्रगतिशील लेखक कहा गया है। वे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे; रसिकता की अपेक्षा तर्क की प्रधानता के पक्ष में रहे। यही कारण है कि इनके साहित्य में ये विशेषताएँ मिलती हैं।
इनके व्यक्तित्व में सजगता एवं गंभीरता थी जो इनके निबन्धों में भी देखी जा सकती है। इनका साहित्यिक जीवन हिन्दी की मासिक पत्रिका ‘हिन्दी प्रदीप’ (संवत् 1913) के सम्पादन से ही आरंभ हुआ था। शुक्ल जी के अनुसार भट्ट जी सामाजिक, साहित्यिक, राजनीतिक, नैतिक सभी प्रकार के छोटे-छोटे गद्य प्रबंध ये अपने पत्र में तीस वर्ष तक निकालते रहे। इनके लिखने का ढंग पडित प्रतापनारायण के ढंग से मिलता-जुलता है। मिश्र जी के समान भट जी भी स्थान-स्थान पर कहावतों का प्रयोग करते थे, पर उनका झुकाव मुहावरों की ओर अधिक रहा।” इनका देहावसान सम्वत् 1971 (सन् 1914) में हुआ था।
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बालकृष्ण भट्ट भारतेन्दु के समकालीन साहित्यकार थे। वे हिन्दी के उन्मेष-काल के एसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने निबन्ध-लेखन द्वारा जन-जागरण का काम किया था। ये परवती निबन्धकार लेखकों की प्रेरणा के आधार भी बने। इनकी गणना खड़ी बोली के जन्मदाताओं में भी की जाती है। इन्होंने ‘हिन्दी प्रदीप’ पत्रिका का पैंतीस वर्ष तक सम्पादन किया और हिन्दी (खडी बोली) का स्वरूप-निर्माण किया। इन्होंने विविध क्षेत्रों में निबन्ध-रचना की है। इनके निबन्धों में साहित्य, दर्शन, राजनीति, पुरातत्व, धर्म, व्यंग्यादि उल्लेखनीय क्षेत्र हैं। इन्होंने सरल, गंभीर सभी विषयों पर निबन्ध लिखे हैं। इनकी तुलना इस विधा-लेखन में अंग्रेजी के निबन्धकारों, एडीसन, स्टील चॉर्ल्स तथा लैम्ब से की जाती है। इनके निबन्धों को गणना एक हजार तक बतायी जाती है।
बालकृष्ण भट्ट का जीवनी
अधिकांश निबन्ध प्रदीप पत्रिका’ की फॉडलों ही पड़े हुए हैं। इनके निबन्धों के दो संग्रह ‘भट्ट निबन्ध-माला’ (भाग-1, भाग-2) उनके सुपुत्र धनंजय भट्ट ने नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित करवाए तथा तीसरा लक्ष्मी व्यास के संपादकत्व में ‘बालकृष्ण भट्ट के निबन्धों का संग्रह’ उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से प्रकाशित हुआ है। इसमें 101 निबन्ध हैं। इनके दो निबन्ध-संग्रह (1) साहित्य समन तथा (2) साहित्य सरोज, 140 कॉटन स्ट्रीट कलकत्ता से प्रकाशित हुए हैं, परन्तु उपलब्ध नहीं हैं। इनके निबन्धों के शीर्षक एक-एक या दो-दो पंक्तियों के भी हैं जैसे-कल्पना, भाशा, माधुर्य, चन्द्रोदय आदि एक शब्द शीर्षक वाले निबन्ध हैं। भगिवो भला न बाप से, जो विधि राखैटेक, जमीन चमन गुल खिलाती है, क्या-क्या बदलता है रंग, आसमा कैसे-कैसे आदि दूसरे वर्ग के उदाहरण हैं।
साहित्यिक निबन्ध इनके गम्भीर अध्ययन तथा आलोचनात्मक प्रतिभा के परिचायक हैं। एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार इनकी रचनाएं इस प्रकार बतायी गयी हैं-
(क) भट्ट निबन्ध माला (भाग-1, भाग-2)
(ख) साहित्य सुमन (निबन्ध-संग्रह)
(ग) कलिराज की सभा, रेल का विकट खेल, बाल-विवाह, भाग्य-रेखा। चन्द्रसेन (छोटे-छोटे नाटक) पद्मावती और शर्मिष्ठा (माइकेल मुधसूदन दत्त के बंग भाषा के अनुवाद नाटक)
(घ) सौ अजान एक सुजान, नूतन बह्मचारी (उपन्यास)
(ङ) शुक्ल जी के शब्दों में, संवत् 1943 में भट्ट जी ने लाला श्रीनिवास दास के ‘संयोगिता-स्वयंवर’ नाटक की सच्ची समालोचना की, और पत्रों में उसकी प्रशंसा देखकर की थी। उसी वर्ष उपाध्याय पं बदरीनारायण चौधरी ने बहुत ही विस्तृत समालोचना अपना पत्रिका में निकाली थी। उस दृष्टि से सम्यक आलोचना का हिन्दी में सूत्रपात करने वाल इन्हीं दो लेखकों को समझना चाहिए।
बालकृष्ण भट्ट का जीवन परिचय
भट्ट जी के ललित-निबन्धों में अध्यात्मिकता, धर्म, देश-भक्ति राष्ट्र-प्रेम आर सांस्कृतिक मूल्य मुख्य रूप में मिलते हैं। इन्होंने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष, स्पष्ट अथवा व्यंग्य से। अपने निबन्धों के द्वारा अपने देश-प्रेम तथा राष्ट्र-भक्ति को पुष्ट किया है। इनके लालत निबन्धों में-शंकराचार्य, शंकराचार्य और गुरू नान्हिक (नामक), चैतन्य महा प्रभु, स्वामा दयानन्द आदि निबन्ध गिनाए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त ललित-निबन्ध शैली, नाटकीय-संवाद, स्तोत्र शैली-व्यंग्य, आक्षेप, आलोचना ही मुख्य अंलकृत शैली, इनके निबन्धों की मख्य शैलियां हैं।
अधिकांश निबन्ध विचारात्मक हैं। गंभीर विषयों संबंधी निबन्धों में ‘शब्द की आकर्षण शक्ति’, साहित्य जनसमूह का विकास है, आत्मनिर्भरता, चरित्र शोधन, आत्म-गौरव, कल्पना आदि निबन्ध उद्धरणीय हैं। पत्नी स्तवः वधू स्तवराज, दम्माख्यान तथा हाकिम आप, उनकी हिम्मत आदि। डॉ. मधुकर भट्ट का कहना है कि-“इनके ललित-निबन्धों में विविधता और रोचकता मिलती है। भट्ट जी ने अनेक शैलियों में अनेक प्रकार के रोचक ललित-निबन्ध लिखे हैं। इन निबन्धों में लेखक बहुधा पाठक से बेतकल्लुफी के साथ बात करता है। इस आत्मीय राग के कारण ये निबन्ध बड़े रोचक बन पड़े हैं। भारतेन्दु कालीन गद्य-लेखकों में भट्ट जी का नाम विशेष उल्लेखनीय है।
उपरोक्त विवरण के अनुसार भट्ट जी ने निबन्ध-रचना के साथ नाटक और उपन्यास भी लिखे हैं, परन्तु इनकी लोकप्रियता निबन्धों के कारण ही है। निबन्ध-लेखन में इन्हें विशेष सफलता मिली है। इनके निबन्धों का विषय राजनीति, साहित्य, नैतिकता-संबंधी विषयों से जुड़ा है। इनके निबन्धों में समस्याओं का प्रतिपादन, विचारों की गंभीरता लेखक के व्यक्तित्व की अभिव्यंजना भली-भाँति हो पाई है। इनके निबन्धों में नाटकीय, संलाप, कथोपकथन, एवं भाषण-पद्धतियों का प्रयोग मिलता है। इतना विविध शैली प्रयोग अन्य किसी निबन्धकार की रचनाओं में नहीं मिलता है। हास्य-व्यंग्य का पुट तो इनके निबन्धों की मुख्य विशेषता है।
हिन्दी साहित्य इतिहास लेखकों ने इनके निबन्धों को तीन श्रेणियों में बाँटा है (1) वर्णानात्मक (2) विचारात्मक (3) भावात्मक (4) ललित।
इन्होंने अपने निबन्धों के द्वारा अंग्रेजों की शोषक-नीति, शासकों की अतियों-क्रूरताओं, पुलिस के अत्याचारों आदि का निर्भीकता से वर्णन किया है, पर्दाफाश किया है। भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता, भारतीय आचार-विचार परम्पराओं आदि के समर्थन में भी इन्होंने निबन्ध लिखकर अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। समीक्षकों का मानना है कि भट्ट जी भारतेन्दु-युग के सांस्कृतिक मूल्यों के प्रमख सत्रधार थे। यह भी पढ़ें बालमुकुन्द गुप्त का जीवन एवं साहित्यिक परिचय