कहानी को परिभाषित करते हुए उसके विकास पर प्रकाश डालिए ?

कहानी को परिभाषित करते हुए उसके विकास पर प्रकाश डालिए ?

कहानी की परिभाषा kahani ki paribhasha aur uska vikas

kahani ki paribhasha aur uska vikas कहानी मानव जीवन के किसी एक घटना या मनोभाव का रोचक, कौतुहल पूर्ण चित्रण है। कहानियाँ मानव सभ्यता के आदिकाल से ही मनोरंजन एवं आनंद का साधन रही है। केवल मनोरंजन ही नहीं, वरन् शिक्षा प्रदान करने नीति और उपदेश देने के लिए अच्छे साधन का काम करती है । हमारे देष में मनोरंजन के लिए जहाँ वृहत् कथा मंजरी और कथासरितासागर सदृश रोचक कहानी-ग्रन्थ मिलते है, वहां मानव – व्यवहार संबंधी नीतिपूर्ण, उपदेषात्मक कहानियों के लिए पंचतंत्र एवं हितोपदेष जैसी रचनाएँ भी मिलती हैं। इसके अतिरिक्त उपनिषदों की कहानियाँ तो मानव को दार्शनिक जीवन की गहराइयों से सराबोर कर देती हैं । इस प्रकार कहानी वह सरव, सरस, प्रिय एवं माध्यम है जिसके द्वारा हम ऊँची से ऊँची शिक्षा प्रदान कर सकते हैं ।

कहानी को परिभाषित करते हुए उसके विकास पर प्रकाश डालिए ?

मुंशी प्रेमचन्द के अनुसार – ” गल्प (कहानी) एक ऐसी गद्य रचना है, जो किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करती है। कहानी के विभिन्न चरित्र, कहानी की शैली और कथानक उसी एक मनोभाव को पुष्ट करते हैं । यह रमणीय उद्यान न होकर, सुगन्धित फूलों से युक्त एक गमला है।”

हिंदी कहानी का विकास kahani ki paribhasha aur uska vikas

इस धरती पर आधुनिक मानव के अवतरण, भाषा लेखन, और चित्रकारी के विकास के साथ साथ ही कालांतर में कहानियों का भी जन्म हुआ। जब मनुष्यों ने धीरे धीरे स्थायी रूप से रहना आरम्भ कर दिया जिससे परिवार,गाँव और कबीले बने। साथ ही प्रादुर्भाव हुआ कृषि का जिसने मनुष्यों की बुभुक्षा की समस्या को बहुत हद तक हल करने में सफलता मिली। इसी स्थायित्व ने भाषा और लेखन के विकास को भी बल दिया जिससे जन्म हुआ किस्से कहानियों का । ज्यूँ ज्यूँ मनुष्य कार्यशील होता गया …. तरह तरह की किस्से कहानियों का भी पनपीं और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक समाज में विभिन्न तरह की स्थानीय कहानियाँ आज भी प्रचलित हैं।

आरम्भ में लेखन पद्धति उतनी समृद्ध नहीं थी.. लेकिन भाषा का विकास अपेक्षाकृत उससे जल्दी हो गया। जिसमें कहानियों को अनुश्रुतियों के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ियों में स्थानांतरित करने की परंपरा

शुरू हुई। आज़ भी हममें से ज़्यादातर लोगों को अपने बड़े बुजुर्गों द्वारा कही गयी कहानियाँ याद होंगी लेकिन इसमें ध्यान देने योग्य बात ये है कि इनमें से ज़्यादातर कहानियाँ लिखित अवस्था में न होकर अनुश्रुतियों के रूप में हमें याद हैं। इस तरह से कहानियाँ हमें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अनुश्रुतियों के रूप में विरासत में मिली हैं।

मूलतः किसी को लिखने के लिए पाँच तत्वों की आवश्यकता होती है।

(1) कथावस्तु, (2) चरित्र चित्रण (3) कथोपकथन (4) भाषशैली, (5) उद्देश्य

बिना इनके किसी कहानी की रचना हो ही नहीं सकती। लेकिन उपन्यासों में भी लगभग इन्हीं तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन दोनों में मूल भिन्नता यह है कि उपन्यास कहानी का एक विस्तृत रूप होता है जिसमें प्रत्येक सूक्ष्म घटनाओं को विस्तृत वर्णन होता है।

प्राचीनकाल में सदियों तक वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, दुर्गम पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की प्रचलित कथाएँ, जिनकी कहानियाँ घटनाओं पर आधारित हुआ करती थीं, भी कहानी के ही रूप हैं।
‘गुणढ्य’ की “वृहत्कथा” को, जिसमें ‘उदयन’, ‘वासवदत्ता’, समुद्री व्यापारियों, राजकुमार तथा राजकुमारियों के पराक्रम की घटना प्रधान कथाओं का बाहुल्य है, प्राचीनतम रचना कहा जा सकता है। वृहत्कथा का प्रभाव ‘दण्डी’ के “दशकुमार चरित”, “बाणभट्ट’ की “कादम्बरी”, ‘सुबन्धु’ की “वासवदत्ता”, ‘धनपाल’ की “तिलकमंजरी”, “सोमदेव’ के ” यशस्तिलक” तथा “मालतीमाधव”, “अभिज्ञान शाकुन्तलम्”, “मालविकाग्निमित्र”, “विक्रमोर्वशीय”, “रत्नावली”, “मृच्छकटिकम्” जैसे अन्य काव्यग्रंथों पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। इसके पश्चात् छोटे आकार वाली “पंचतंत्र”, ”हितोपदेश”, “बेताल पच्चीसी”, “सिंहासन बत्तीसी”, “शुक सप्तति”, “कथा सरित्सागर”, “भोजप्रबन्ध” जैसी साहित्यिक एवं कलात्मक कहानियों का युग आया। इन कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः कहानियों में असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखाई गई हैं।

हिंदी कहानी को सर्वश्रेष्ठ रूप देने वाले ‘प्रेमचन्द’ ने कहानी की परिभाषा इस प्रकार से की है : “कहानी वह ध्रुपद की तान है, जिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है, एक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपूर्ण कर देता है, जितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता।”

कहानी को परिभाषित करते हुए उसके विकास पर प्रकाश डालिए ? kahani ki paribhasha aur uska vikas

हिन्दी के लेखकों में प्रेमचंद पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने तीन लेखों में कहानी के सम्बंध में अपने विचार व्यक्त किए हैं – ‘कहानी एक रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा- विन्यास, सब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं।

उपन्यास की भाँति उसमें मानव जीवन का संपूर्ण तथा बृहत रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता। वह ऐसा रमणीय उद्यान नहीं जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेल-बूटे सजे हुए हैं, बल्कि एक गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है। kahani ki paribhasha aur uska vikas
हिंदी कहानियों के विकास को वास्तविक पर लगे 1910 से 1960 के दशक के बीच सन 1900 से 1915 तक के कालखंड को हिन्दी कहानी के विकास का प्रारंभिक चरण माना जा सकता है। इस दौर में कई लेखकों की कहानियाँ प्रकाशित हुई जिससे हिंदी कहानियों के आधुनिक विकास के बारे में पता चलता है।

प्रेमचंद के आगमन से हिन्दी का कथा-साहित्य की दिशा कुछ हद तक ” आदर्शोन्मुख यथार्थवाद” की ओर मुड़ गई और “प्रसाद” के आगमन से “रोमांटिक यथार्थवाद” की ओर। सन 1922 में “उग्र” का हिन्दी – कथा – साहित्य में प्रवेश हुआ। उग्र न तो “प्रसाद” की तरह रोमैंटिक थे और न ही प्रेमचंद की भाँति आदर्शोन्मुख यथार्थवादी। वे केवल “यथार्थवादी” थे प्रकृति से ही उन्होंने समाज के नंगे यथार्थ को सशक्त भाषा-शैली में उजागर किया। 1927 से 1928 आ आसपास जैनेन्द्र ने कहानी लिखना आरंभ किया। उनके आगमन के साथ ही हिन्दी कहानी का नए युग आरम्भ हुआ।

प्रगतिशील लेखक संघ kahani ki paribhasha aur uska vikas

1936 तक “प्रगतिशील लेखक संघ” की स्थापना हो चुकी थी। इस समय के लेखकों की रचनाओं में प्रगतिशीलता के तत्त्व का जो समावेश हुआ उसे युगधर्म समझना चाहिए। “यशपाल राष्ट्रीय संग्राम के एक सक्रिय क्रांतिकारी कार्यकर्ता थे, अतः वह प्रभाव उनकी कहानियों में भी आया । ” अज्ञेय” प्रयोगवादी कलाकार थे, उनके आगमन के साथ कहानी नई दिशा की ओर मुड़ी। जिस आधुनिकता बोध की आज बहुत चर्चा की जाती है उसका श्रेय अज्ञेय को ही जाता है। ” अश्क” प्रेमचंद परंपरा के कहानीकार हैं। अश्क के अतिरिक्त वृंदावनलाल वर्मा, भगवतीचरण वर्मा, इलाचन्द्र जोशी, अमृतलाल नागर आदि उपन्यासकारों ने भी कहानियों के क्षेत्र में काम किया है। किन्तु इनका वास्तविक क्षेत्र उपन्यास है कहानी नहीं। इसके बाद सन 1950 के आसपास से हिन्दी कहानियाँ नए दौर से गुजरने लगीं। जिसमें आधुनिक विचारधारा की छाप नज़र आती है।

आज़ के परिदृश्य की बात की जाए तो अब कहानियों में आधुनिकता का समावेश हो गया है जिसमें विज्ञान कथा,सामाजिक संदेश,धर्म, राजनीति, भविष्य, रोमांच, रहस्य, शौर्य, बलिदान, त्याग आदि चीज़े शामिल हो गई हैं।
लेकिन कहानी सदियों तक एक अनवरत चलनेवाली प्रक्रिया है जिसमें कालांतर में समयानुकूल बदलाव भी होते रहेंगे और इसके विकास को एक नया आयाम मिलता रहेगा। kahani ki paribhasha aur uska vikas

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